आरतियाँ Arati in Hindi

A collection of all the hindi aratis. Ganga ji , Shivji, Shani dev aarati.


हनुमान चालीसा आरती सहित

 

भगवान राम के सबसे बड़े भक्त हनुमान जी हमेशा श्री राम की भक्ति में लीन रहते हैं सारा दिन प्रभु की सेवा में लगे रहते हैं.

महाबली हनुमान को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का अनन्य भक्त माना जाता है। उनको धरती पर अमरत्व का वरदान प्राप्त है। 


रामायण के प्रमुख पात्रों में से एक, इंसानी जीवन को कठिनाई से उद्धार देने वाले पवनपुत्र को दुष्टों को दंड देने वाला और संहारक माना जाता है। 


भगवान राम की भक्ति के प्रसंग में उन्होंने कई बार श्रीराम के सानिध्य में शत्रुओं का संहार किया और युद्ध में विजय का वरण किया। इसलिए सनातन संस्कृति में कई पर्व हनुमानजी को समर्पित है।

 

दोहा

 

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।

बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥

 

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार

बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार

 

चौपाई

 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥

 

राम दूत अतुलित बल धामा

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

 

महाबीर बिक्रम बजरंगी

कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

 

कंचन बरन बिराज सुबेसा

कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥

 

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे

काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥

 

शंकर सुवन केसरी नंदन

तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥

 

विद्यावान गुनी अति चातुर

राम काज करिबे को आतुर॥७॥

 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया

राम लखन सीता मनबसिया॥८॥

 

सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा

विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

 

भीम रूप धरि असुर सँहारे

रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥

 

लाय सजीवन लखन जियाए

श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥

 

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई

तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥

 

सहस बदन तुम्हरो जस गावै

अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥

 

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा

नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

 

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते

कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

 

तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा

राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

 

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना

लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥

 

जुग सहस्त्र जोजन पर भानू

लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥

 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही

जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥

 

दुर्गम काज जगत के जेते

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

 

राम दुआरे तुम रखवारे

होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

 

सब सुख लहैं तुम्हारी सरना

तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥

 

आपन तेज सम्हारो आपै

तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥

 

भूत पिशाच निकट नहि आवै

महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

 

नासै रोग हरे सब पीरा

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

 

संकट तै हनुमान छुडावै

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥

 

सब पर राम तपस्वी राजा

तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

 

और मनोरथ जो कोई लावै

सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥

 

चारों जुग परताप तुम्हारा

है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

 

साधु संत के तुम रखवारे

असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥

 

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता

अस बर दीन जानकी माता॥३१॥

 

राम रसायन तुम्हरे पासा

सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

 

तुम्हरे भजन राम को पावै

जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

 

अंतकाल रघुवरपुर जाई

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥

 

और देवता चित्त ना धरई

हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥

 

संकट कटै मिटै सब पीरा

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

 

जै जै जै हनुमान गुसाईँ

कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥

 

जो सत बार पाठ कर कोई

छूटहि बंदि महा सुख होई॥३८॥

 

जो यह पढ़े हनुमान चालीसा

होय सिद्ध साखी गौरीसा॥३९॥

 

तुलसीदास सदा हरि चेरा

कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

 

दोहा

 

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
 

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श्री हनुमान भगवान राम का निजधाम प्रस्थान

 

अश्विन पूर्णिमा के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अयोध्या से सटे फैजाबाद शहर के सरयू किनारे जल समाधि लेकर महाप्रयाण किया। श्रीराम ने सभी की उपस्थिति में ब्रह्म मुहूर्त में सरयू नदी की ओर प्रयाण किया। जब श्रीराम जल समाधि ले रहे थे तब उनके परिवार के सदस्य भरत, शत्रुघ्न, उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति सहित हनुमान, सुग्रीव आदि कई महान आत्माएं मौजूद थीं।

 

 गरुढ़ पुराण अनुसार  :-

 

‘अतो रोचननामासौ मरुदंशः प्रकीर्तितः रामावतारे हनुमान्रामकार्यार्थसाधकः।’ अर्थात ‘जब देवाधिदेव रामचंद्र अवतरित हुए तब उनके प्रतिनिधि मरुत् अर्थात वायुदेव उनकी सेवा और शुश्रुषा के हेतु उनके साथ अवतरित हुए जिन्हें सभी हनुमान इस नाम से जानते हैं।’

 

 

रामायण के बालकांड अनुसार:-

 

‘विष्णोः सहायान् बलिनः सृजध्वम्’ अर्थात ‘भगवान विष्णु के सहायता हेतु सभी देवों ने अनेकों वानर, भालू और विविध प्राणियों के रूपमें जन्म लिया।’


 

अतः जब प्रभु राम स्वयं ही अपने धाम वापस चले गए तब सभी वानरों का इस मृत्युलोक में कार्य समाप्त हो चुका था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि तब हनुमान जी कहां चले गए या उनका क्या हुआ?

 

 

कहते हैं कि श्रीराम के अपने निजधाम प्रस्थान करने के बाद हनुमानजी और अन्य वानर किंपुरुष नामक देश को प्रस्थान कर गए। वे मयासुर द्वारा निर्मित द्विविध नामक विमान में बैठकर किंपुरुष नामक लोक में प्रस्थान कर गए। 

किंपुरुष लोक स्वर्ग लोग के समकक्ष है। यह किन्नर, वानर, यक्ष, यज्ञभुज् आदि जीवों का निवास स्थान है। वहां भूमी के उपर और भूमी के नीचे महाकाय शहरों का निर्माण किया गया है। 

योधेय, ईश्वास, अर्ष्टिषेण, प्रहर्तू आदि वानरों के साथ हनुमानजी इस लोग में प्रभु रामकी भक्ति, कीर्तन और पूजा में लीन रहते हैं।

 

श्रीशुक उवाच। किम्पुरुषे वर्षे भगवन्तमादिपुरुषं लक्ष्मणाग्रजं सीताभिरामं रामं तच्चरण सन्निकर्षाभिरतः परमभागवतो हनुमान्सह किम्पुरुषैरविरतभक्तिरुपास्ते॥ - श्रीमद्भागवतम्

 

 

श्रील शुकदेव गोस्वामी जी ने कहाँ, “हे राजन्, किंपुरुष लोक में भक्तों में श्रेष्ठ हनुमान उस लोक के अन्य निवासियों के साथ प्रभु राम जो लक्ष्मण के बड़े भ्राता और सीता के पति है, उनकी सेवा में हमेशा मग्न रहते हैं।”

 

आर्ष्टिषेणेन सह गन्धर्वैरनुगीयमानां परमकल्याणीं भर्तृभगवत्कथां समुपशृणोति स्वयं चेदं गायति ॥- श्रीमद्भागवतम्

 

वहां गंधर्वों के समूह हमेशा रामचंद्र के गुणों का गान करते रहते हैं। वह गान अत्यंत शुभ और मनमोहक होता है। 

हनुमानजी और आर्ष्ट्रीषेण जो किंपुरुष लोक के प्रमुख है वे उन स्तुतिगानों को हमेशा सुनते रहते हैं।

 

किम्पौरुषाणाम् वायुपुत्रोऽहं ध्रुवे ध्रुवः मुनिः॥- ब्रह्म वैवर्त पुराण किंपुरुष लोक के निवासियों में तुम मुझे वायुपुत्र हनुमान जानलो तथा ध्रुवलोक में मुझे ध्रुव ऋषि के रूप में देखो।

 

 

कहां हैं किंपुरुष नामक क्षेत्र?

 

किंपुरुष नेपाल के हिमालययी क्षेत्र में आता है। प्राचीनकाल में जम्बूद्वीप के नौ खंडों में से एक किंपुरुष भी था। नेपाल और तिब्बत के बीच कहीं पर किंपुरुष की स्थिति बताई गई है। 

हालांकि पुराणों अनुसार किंपुरुष हिमालय पर्वत के उत्तर भाग का नाम है। यहां किन्नर नामक मानव जाति निवास करती थी। 

ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि इस स्थान पर मानव की आदिम जातियां निवास करती थीं।

 

यहीं पर एक पर्वत है जिसका नाम गंधमादन कहा गया है।

 

 

 

हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद भागवत में वर्णन आता है। उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। 

एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान को लेटे देखा और फिर हनुमान ने भीम का घमंड चूर कर दिया था।

 

 

गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। वे सब यहां निर्भीक विचरण करते हैं। 

हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। 


सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। 

पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

 

 

 

बाल समय रवि भक्षि लियो तब

 

तीनहुं लोक भयो अंधियारों

ताहि सो त्रास भयो जग को

 

यह संकट काहु सों जात न टारो

 

(देवन आनि करी विनती तब)

(छाड़ि दियो रवि कष्ट निवारो)

 

को नहीं जानत है जग में कपि

 

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

 

 

वालि की त्रास कपीस बसै गिरि

जात महाप्रभु पंथ निहारो

 

चौंकि महामुनि शाप दियो तब

चाहिए कौन बिचार बिचारो

 

(कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु)

(सो तुम दास के शोक निवारो)

 

को नहीं जानत है जग में कपि

 

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

 

 

 

अंगद के संग लेन गए सिय

खोज कपीस यह बैन उचारो

 

जीवत न बचिहौ हम सो जु

बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो

 

(हेरी थके तट सिन्धु सबै तब)

 

(लाए सिया-सुधि प्राण उबारो)

को नहीं जानत है जग में कपि

 

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

 

 

रावण त्रास दई सिय को सब

राक्षसि सो कही सोक निवारो

 

ताहि समय हनुमान महाप्रभु

जाए महा रजनीचर मारो

 

(चाहत सीय असोक सों आगिसु)

(दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो)

 

को नहीं जानत है जग में कपि

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

 

 

बान लग्यो उर लछिमन के तब

प्राण तजे सुत रावण मारो

लै गृह बैद्य सुषेन समेत

 

तबै गिरि द्रोण सुबीर उपारो

 

(आनि सजीवन हाथ दई तब)

(लछिमन के तुम प्रान उबारो)

 

को नहीं जानत है जग में कपि

 

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

 



 

रावन युद्ध अजान कियो तब

नाग कि फांस सबै सिर डारो

 

श्री रघुनाथ समेत सबै दल

मोह भयो यह संकट भारो

 

(आनि खगेस तबै हनुमान जु)

(बंधन काटि सुत्रास निवारो)

 

को नहीं जानत है जग में कपि

 

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

 

 

 

 

बंधु समेत जबै अहिरावन

लै रघुनाथ पताल सिधारो

 

देबिन्ही पूजि भली विधि सों बलि

देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो

 

(जाये सहाए भयो तब ही)

(अहिरावन सैन्य समेत संहारो)

 

को नहीं जानत है जग में कपि

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

 

 

 

 

काज किये बड़ देवन के तुम

बीर महाप्रभु देखि बिचारो

 

कौन सो संकट मोर गरीब को

जो तुमसो नहिं जात है टारो

 

(बेगि हरो हनुमान महाप्रभु)

(जो कछु संकट होए हमारो)

 

को नहीं जानत है जग में कपि

 

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

(संकटमोचन नाम तिहारो)

 

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श्री हनुमान आरती - Hanuman ji ki Aarti

 

आरती कीजै हनुमान लला की।

दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

 

जाके बल से गिरिवर कांपे।

रोग दोष जाके निकट न झांके॥

 

अंजनि पुत्र महा बलदाई।

सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥

 

॥ आरती कीजै हनुमान.. ॥

 

दे बीड़ा रघुनाथ पठाए।

लंका जारि सिया सुधि लाए॥

 

लंका सो कोट समुद्र-सी खाई।

जात पवनसुत बार न लाई॥

 

॥ आरती कीजै हनुमान.. ॥

 

लंका जारि असुर संहारे।

सियारामजी के काज सवारे॥

 

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे।

आनि संजीवन प्राण उबारे॥

 

॥ आरती कीजै हनुमान.. ॥

 

पैठि पाताल तोरि जम-कारे।

अहिरावण की भुजा उखारे॥

 

बाएं भुजा असुरदल मारे।

दाहिने भुजा संतजन तारे॥

 

॥ आरती कीजै हनुमान.. ॥

 

सुर नर मुनि आरती उतारें।

जय जय जय हनुमान उचारें॥

 

कंचन थार कपूर लौ छाई।

आरती करत अंजना माई॥

 

॥ आरती कीजै हनुमान.. ॥

 

जो हनुमानजी की आरती गावे।

बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥

 

॥ आरती कीजै हनुमान.. ॥

 

 

॥ इति श्री हनुमान आरती ॥