शनि देव 1

शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं।


शनि की पहिचान

जातक को अपने जन्म दिनांक को देखना चाहिये, यदि शनि चौथे, छठे, आठवें, बारहवें भाव मे किसी भी राशि में विशेषकर नीच राशि में बैठा हो, तो निश्चित ही आर्थिक, मानसिक, भौतिक पीडायें अपनी महादशा, अन्तर्दशा, में देगा, इसमे कोई सन्देह नही है, समय से पहले यानि महादशा, अन्तर्दशा, आरम्भ होने से पहले शनि के बीज मंत्र का अवश्य जाप कर लेना चाहिये.ताकि शनि प्रताडित न कर सके, और शनि की महादशा और अन्तर्दशा का समय सुख से बीते.याद रखें अस्त शनि भयंकर पीडादायक माना जाता है, चाहे वह किसी भी भाव में क्यों न हो.?