भवनभास्कर

वास्तुविद्याके अनुसार मकान बनानेसे कुवास्तुजनित कष्ट दूर हो जाते है ।


सोलहवाँ अध्याय

सोलहवाँ अध्याय

गृहके समीपस्थ शुभाशुभ वस्तुएँ

( १ ) घरके समीप सचिवालय हो तो धनकी हानि, धूर्तका घर हो तो पुत्रनाश, मन्दिर हो तो उद्वेग ( अशान्ति ), चौराहा हो तो अपशय, चैत्य वृक्ष हो तो भय, दीमक व पोली जमीन हो तो विपत्ति, गड्ढा हो तो पिपासा और कूर्माकार जमीन हो तो धननाश होता है ।

( २ ) देवालय, धूर्त, सचिव या चौराहेके समीप घर बनानेसे दुःख, शोक तथा भय बना रहता है ।

( ३ ) भविष्यपुराणमें आया है - नगरके द्वार, चौक, यज्ञशाला, शिल्पियोंके रहनेके स्थान, जुआ खेलने तथा मद्य - मांसादि बेचनेके स्थान, पाखण्डियोंके रहनेके स्थान, राजाके नौकरोंके रहनेके स्थान, देवमन्दिरके मार्ग, राजमार्ग और राजाके महल - इन स्थानोंसे दूर घर बनाना चाहिये । स्वच्छ, मुख्य मार्गवाला, उत्तम व्यवहारवाले लोगोंसे आवृत्त तथा दुष्टोंके निवाससे दूर स्थानपर गृहका निर्माण करना चाहिये ।

( ४ ) घरके पूर्वमें विवर या गड्ढा, दक्षिणमें मठ - मन्दिर, पश्चिममें कमलयुक्त जल और उत्तरमें खाई हो तो शत्रुसे भय होता है ।